हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक लंबी क्लिनिकल स्टडी कहती है कि जीवन में किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक तनाव सबसे पहले हमारी स्किन या त्वचा पर रिफ्लेक्ट होना शुरू होता है. त्वचा की उम्र का मनुष्य की उम्र के साथ उतना सीधा कनेक्शन नहीं है, जितना उसके जीवन की सार्थकता और खुशी के साथ है.
इस स्टडी के मुताबिक मल्टीपल स्क्लेरोसिस, एग्जिमा, सफेद दाग जैसी बीमारियों की मुख्य वजह शरीर में कॉर्टिसॉल हॉर्मोन का जरूरत से ज्यादा बढ़ जाना है. कॉर्टिसॉल एक स्ट्रेस हॉर्मोन है, जो शरीर की इंटरनल फंक्शनिंग पर नकारात्मक असर डालता है. त्वचा से जुड़ी हर समस्या के पीछे यही वजह होती है कि स्ट्रेस हॉर्मोन यानि की टॉक्सिन का स्तर बढ़ने लगता है.
हार्वर्ड की स्टडी तो ये नहीं कहती, लेकिन न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटीके मेडिकल स्कूल की एक स्टडी जरूर ये कहती है कि त्वचा की एजिंग को तेजी से बढ़ने से रोकने की सबसे जरूरी उपाय सिर्फ एक है. तनाव, अवसाद और दुख को कम किया जाए और खुश रह जाए.
अरबों रु. की क्रीम बेचने वाली किसी कंपनी का विज्ञापन आपको ये नहीं बताएगा कि अगर आप भीतर से नाखुश हैं, अकेले हैं, तनाव में हैं, अवसाद और एंजायटी के शिकार हैं तो ये क्रीम आपको खूबसूरत और जवां दिखने में कोई मदद नहीं कर सकती.
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने ये भी पाया कि दुख, तनाव और अवसाद से उपजी त्वचा संबंधी समस्याएं अवसाद दूर होने पर अपने आप ठीक भी हो जाती हैं. यह मुख्यत: भावनात्मक समस्या है, न कि शारीरिक. इसलिए अगर कोई भी डॉक्टर या कंपनी आपको कोई दवा या क्रीम देकर ये कहती है कि इसे लगाने से समस्या दूर हो जाएगी या त्वचा चमकदार हो जाएगी तो यकीन मानिए कि आपको मैनिपुलेट किया जा रहा है.
सुंदर त्वचा का सिर्फ और सिर्फ एक ही राज है- मन की खुशी, सुख, संतोष.