योगाभ्यास करने वाली स्त्री को योगिनी या योगिन कहा जाता है। पुरुषों के लिए इसका समानांतर योगी है। अष्ट या चौंसठ योगिनियां प्रायः आदिशक्ति मां काली का अवतार या अंश होती है। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने उक्त चौंसठ चौंसठ अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सखियां हैं। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी प्रायः आद्य शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं। आइये डालते हैं भारत में योगिनी मंदिर पर एक नजर।
भारत में योगिनी मंदिर
भारत में योगिनी मंदिर की संख्या आठ या नौ के करीब
भारत में योगिनी मंदिर की संख्या करीब आठ या 9 हैंं । इसमें केवल पांच के लिखित साक्ष्य उपलब्ध होते हैं-दो ओडिशा में तथा तीन मध्य प्रदेश में। समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। प्रमुख रूप से आठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं:- 1.सुर-सुंदरी योगिनी, 2.मनोहरा योगिनी, 3. कनकवती योगिनी, 4.कामेश्वरी योगिनी, 5. रति सुंदरी योगिनी, 6. पद्मिनी योगिनी, 7. नतिनी योगिनी और 8. मधुमती योगिनी।
एक नजर में भारत में योगिनी मंदिर के नाम
चौंसठ योगिनियों के नाम :- 1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वालाकामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी. 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा,28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।
खास महत्व है भारत में योगिनी मंदिर का
1.चौसठ योगिनी मंदिर, मुरैना:- मध्य प्रदेश के मुरैना स्थित चौसठ योगिनी मंदिर का विशेष महत्व है। भारत में योगिनी मंदिर को गुजरे ज़माने में तांत्रिक विश्वविद्यालय कहा जाता था। उस दौर में इस मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान करके तांत्रिक सिद्धियाँ हासिल करने के लिए तांत्रिकों का जमवाड़ लगा रहता था। मौजूदा समय में भी यहां कुछ लोग तांत्रिक सिद्धियां हासिल करने के लिए यज्ञ करते हैं। ग्राम पंचायत मितावली, थाना रिठौराकलां, ज़िला मुरैना (मध्य प्रदेश) में यह प्राचीन चौंसठ योगिनी शिव मंदिर है। इसे ‘इकंतेश्वर महादेव मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की ऊंचाई भूमि तल से 300 फीट है। इसका निर्माण तत्कालीन प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने किया था। यह मंदिर गोलाकार है। इसी गोलाई में बने चौंसठ कमरों में हर एक में एक शिवलिंग स्थापित है। इसके मुख्य परिसर में एक विशाल शिव मंदिर है।
भारत में योगिनी मंदिर को नवीं शताब्दी में बनाया गया था
भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक़, इस मंदिर को नवीं सदी में बनवाया गया था। कभी हर कमरे में भगवान शिव के साथ देवी योगिनी की मूर्तियां भी थीं, इसलिए इसे चौंसठ योगिनी शिवमंदिर भी कहा जाता है। देवी की कुछ मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं। कुछ मूर्तियां देश के विभिन्न संग्रहालयों में भेजी गई हैं। तक़रीबन 200 सीढ़ियां चढ़ने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है। यह सौ से ज़्यादा पत्थर के खंभों पर टिका है। किसी ज़माने में इस मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान किया जाता था।यह स्थान ग्वालियर से करीब 40 कि.मी. दूर है। इस स्थान पर पहुंचने के लिए ग्वालियर से मुरैना रोड पर जाना पड़ेगा। मुरैना से पहले करह बाबा से या फिर मालनपुर रोड से पढ़ावली पहुंचा जा सकता है। पढ़ावली ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यही वह शिवमंदिर है, जिसको आधार मानकर ब्रिटिश वास्तुविद् सर एडविन लुटियंस ने संसद भवन बनाया।
मध्य प्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बना
चौंसठ योगिनी मंदिर, जबलपुर:- चौंसठ योगिनी मंदिर जबलपुर, मध्य प्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह मंदिर जबलपुर की ऐतिहासिक संपन्नता में एक और अध्याय जोड़ता है। प्रसिद्ध संगमरमर चट्टान के पास स्थित इस मंदिर में देवी दुर्गा की 64 अनुषंगिकों की प्रतिमा है। इस मंदिर की विषेशता इसके बीच में स्थापित भागवान शिव की प्रतिमा है, जो कि देवियों की प्रतिमा से घिरी हुई है। इस मंदिर का निर्माण सन 1000 के आसपास कलचुरी वंश के शासकों ने करवाया था। जबलपुर का ‘चौंसठ योगिनी मंदिर’ सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल भेड़ाघाट व धुआंधार जलप्रपात के नजदीक एक ऊंची पहाड़ी के शिखर पर स्थापित है। पहाड़ी के शिखर पर होने के कारण यहां से काफ़ी बड़े भू-भाग व बलखाती नर्मदा नदी को निहारा जा सकता है।
मां दुर्गा के रूप में किया गया था स्थापित
चौंसठ योगिनी मंदिर को दसवीं शताब्दी में कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने मां दुर्गा के रूप में स्थापित किया था। लोगों का मानना है कि यह स्थली महर्षि भृगु की जन्मस्थली है, जहां उनके प्रताप से प्रभावित होकर तत्कालीन कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। वर्तमान में मंदिर के अंदर भगवान शिव व मां पार्वती की नंदी पर वैवाहिक वेशभूषा में बैठे हुए पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के चारों तरफ़ करीब दस फुट ऊंची गोलाई में चारदीवारी बनाई गई है, जो पत्थरों की बनी है तथा मंदिर में प्रवेश के लिए केवल एक तंग द्वार बनाया गया है। चारदीवारी के अंदर खुला प्रांगण है, जिसके बीचों-बीच करीब डेढ़-दो फुट ऊंचा और करीब 80-100 फुट लंबा एक चबूतरा बनाया गया है। चारदीवारी के साथ दक्षिणी भाग में मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर का एक कक्ष जो सबसे पीछे है, उसमें शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित है। इसके आगे एक बड़ा-सा बरामदा है, जो खुला है। बरामदे के सामने चबूतरे पर शिवलिंग की स्थापना की गई है, जहां पर भक्तजन पूजा-पाठ करवाते हैं।मंदिर की चारदीवारी जो गोल है, उसके ऊपर मंदिर के अंदर के भाग पर चौंसठ योगिनियों की विभिन्न मुद्राओं में पत्थर को तराश कर मूर्तियां स्थापित की गई हैं।
भारत में योगिनी मंदिर को लेकर यह है मान्यता
लोगों का मानना है कि ये सभी चौंसठ योगिनी बहनें तथा तपस्विनियां थीं, जिन्हें महाराक्षसों ने मौत के घाट उतारा था। राक्षसों का संहार करने के लिए यहां स्वयं दुर्गा को आना पड़ा था। इसलिए यहां पर सर्वप्रथम मां दुर्गा की प्रतिमा कलचुरी के शासकों द्वारा स्थापित कर दुर्गा मंदिर बनाया गया था तथा उन सभी चौंसठ योगिनियों की मूर्तियों का निर्माण भी मंदिर प्रांगण की चारदीवारी पर किया गया। कालांतर में मां दुर्गा की मूर्ति की जगह भगवान शिव व मां पार्वती की मूर्ति स्थापित की गई है, ऐसा प्रतीत होता है। इस मंदिर के सीढियों से ऊपर चढ़ने के बाद जैसे ही ऊपर पहुँचा तो वहाँ बनी विशाल गोलाकार आकृति की चारदीवारी देखकर थोड़ा सा आश्चर्य हुआ था कि यह मन्दिर गोलाई में क्यों है? मन्दिर के बाहर बैठने के लिये पत्थर के स्थान बने हुए थे। मुख्य प्रवेश मार्ग के बाहर एक चबूतरे के नीचे सुरंग जैसा निर्माण कार्य दिखायी दिया। मन्दिर में प्रवेश करने का मुख्य द्धार बहुत ज्यादा ऊँचा नहीं बना था इसलिये उसमें से झुक कर अन्दर जाना पड़ा। अन्दर जाते ही सम्पूर्ण मन्दिर दिखायी दे गया। गोलाई वाली चारदीवारी से मन्दिर के शीर्ष व झन्ड़े ही दिख रहे थे। सबसे पहले मुख्य मन्दिर के दर्शन किये गये। उसके बाद वहाँ गोलाई वाली चारदीवारी में बनाई हुई मूर्तियाँ देखी गयी। मुख्य मन्दिर में तो सिर्फ़ एक ही मूर्ति है। जो भगवान शंकर व पार्वती को समर्पित है। मन्दिर में लगी हुई 64 मूर्तियों को देखने की बारी आयी तो उन मूर्तियों की दुर्दशा देखकर बड़ा बुरा लगा। कलाकारों ने महीनों की मेहनत से इन्हे तैयार किया गया होगा। टूटी-फ़ूटी कटी हुई मूर्तियों के बारे में पता लगा कि यहाँ शाँत धर्म के किसी धर्मनिरपेक्ष हमलावर ने हमला बोला था यहाँ की सभी 64 की 64 योगिनी की मूर्तियाँ तोड़ी गयी है, एक भी मूर्ति ऐसी नहीं मिली जो बिना तोड़-फ़ोड़ के बची हो।
चंदेल कला की प्रथम कृति है खजुराहो का यह मंदिर
चौंसठ योगिनी मंदिर, खजुराहो:- शिवसागर झील के दक्षिण पश्चिम में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर चंदेल कला की प्रथम कृति है। यह मंदिर भारत के सभी योगिनी मंदिरों में उत्तम है तथा यह निर्माण की दृष्टि से सबसे अधिक प्राचीन है। यह मंदिर खजुराहो की एक मात्र मंदिर है, जो स्थानीय कणाश्म (ग्रेनाइट) पत्थरों से बनी है तथा इसका विन्यास उत्तर- पूर्व से दक्षिण- पश्चिम की ओर है । यह मंदिर 18 फुट जगती पर आयताकार निर्मित है। इसमें बहुत सी कोठरियाँ बनी हुई हैं। प्रत्येक कोठरी 2.5’ चौड़ी और 4′ लंबी है। इनका प्रवेश द्वार 32 ’ ऊँचा और 16’ चौड़ा है। हर कोठरी के ऊपर छोटे- छोटे कोण स्तुपाकार शिखर है। शिखर का निचला भाग चैत्य गवाक्षों के समान त्रिभुजाकार है। चैसठ योगिनी मंदिर खजुराहो का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। 875-900 ई. के आसपास बना यह मंदिर खजुराहो के मंदिरों के पश्चिमी समूह में आता है। यह मंदिर 64 योगिनी को समर्पित है जो देवी माँ के रूप है। इस मंदिर का डिज़ाइन साधारण और बिना किसी सजावट के है। इसकी दीवारों पर खजुराहो के मंदिरों की तरह नक्काशी की कमी है। इस मंदिर में 67 तीर्थ हैं ,जिनमें से 64 प्रत्येक योगिनी के निवास स्थान के रूप में उपयोग किया जाते हैं। एक बड़ा मंदिर महिषासुर मर्दिनी के रूप में देवी दुर्गा को समर्पित है। बाकी मंदिर मैत्रिका ब्राह्मणी और महेश्वरी के लिए है। यह मंदिर खजुराहों के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह भारत का सबसे पुराना योगिनी मंदिर है।
उड़ीसा के छोटे से गांव में बना यह मंदिर
चौंसठ योगिनी मंदिर हीरापुर उडीसा :- हीरापुर भुवनेश्वर से 20 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है। इसी गांव में भारत की सबसे छोटी योगिनी मंदिर ‘चौसठ योगिनी’ स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण ब्रहम वंश की महारानी के द्वारा 9वीं शताब्दी में हुआ था। इसका उत्खनन 1958 ई. में किया गया था।यह मंदिर गोलाकार आकृति के रुप में बनी हुई है जिसका व्यास 30 फीट है। इसकी दीवारों की ऊंचाई 8 फीट से ज्यादा नहीं है। यह मंदिर भूरे बलूए पत्थर से निर्मित है। इसके अन्दर वृत्ताकार दीवालों की प्रत्येक गुहिकाओं-कोटरों में देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं। इनमें 56 काले ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित हैं। सबके मध्य में मां काली की प्रतिमा स्थापित है। यह मानव शिर पर खड़ी हैं। इसे चण्डी मण्डप कहा जाता है। इसके चारो ओर 8 देवियों की प्रमिताये बनी हैं।कुछ इतिहासकारों का विश्वास है कि चण्डी मण्डप में एक महाभौरव की मूर्ति की पूजा होती थी। इस मंदिर में 64 योगिनियों की मूर्त्तियां बनाई गई है। इनमें से 60 मूर्त्तियां दीवारों के आले में स्थित है। शेष मूर्त्तियां मंदिर के मध्य में एक चबूतरे पर स्थापित है। इस मंदिर का बाहरी दीवार भी काफी रोचक है। इन दीवारों में नौ आले हैं जिनमें महिला पहरेदार की मूर्त्तियां स्थापित है।
इस मंदिर को सोम तीर्थ भी कहा जाता
5.रानीपुर-झरिया बलांनगिर उडीसा का चौंसठ योगिनी मन्दिर:-ईटों से निर्मित भारत में योगिनी मंदिर उड़ीसा के बलांगिर जिले के तितिलागढ़ तहसील रानीपुर झरिया नामक जुड़वे गांव में स्थित है। इस मंदिर के लिंटल पर एक अभिलेख में एक शैव आचार्य गगन शिव ने इसके दानकर्ता थे। सोमतीर्थ का जिक्र पुराण में तीसरी चैथी शताब्दी में हुआ है। इसे सोम तीर्थ भी कहा गया है।यह नौवीं- दसवीं ई. मे सोमवंशी केशरी राजाओं ने निर्मित कराया था। इस क्षेत्र में वैष्णव, बौद्ध,तांत्रिक पूजा पद्धति में प्रचलित था। इस मन्दिर में त्रिमुखी शिव की पाषाण मुर्ति है। इसके मध्य में पार्वती की खड़ी हुई प्रतिमा है। इस मंदिर मं 64 योगिनों के विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां स्थापित हैं। तितिलागढ़ पा्रचीन राजपथ पर स्थित इसे पांचवी शताब्दी में पाणिनी ने भी वर्णित किया है जो मध्य भारत से दक्षिणापथ को जाता है। यह टोंग जार नदी के तट पर बसा हुआ है। पास ही सोमेश्वर सागर भी तथा पहाड़िया भी हैं।